कुछ अनकही बाँते


कुछ अनकहीं बाते..
ना वो कलम लिख पाई..
ना वो लफ़्ज़ मिल पाए..

सुकून  तेरी वो मुस्कान से ही मिलता है..
दर्द आज भी तुझसे दूर रहने मे उठता है..

पता है वो मेरे लिखे खत तुझे न ला सकेंगे 
पर यादो में तो तुझे ही बस तुझे ही बसा सके..

 तेरी तसवीर  ही है जो मुझे एकला नहीं रखती 
 खामोश जिन्दगी को खुशी से भर्ती 

आज भी वो तेरी यादों की चुस्की लेता हु..
आज भी उस चाहत की चाह को चुम लेता हु..

बहुत कुछ कह के भी कुछ न कहे जाना..
कुछ कह कर भी बहुत कुछ हो जाना..

तेरी वो लकीरों से रुह को छूने का
 वो ज़रिया याद रहेगा..
तेरा वो हर ज़ालिमपना याद रहेगा..

अब दिल की बात बोलू?? दर्द तो है..
तेरे न होने के होने से विश्वास में..
न उस अनछुए एशास में..दर्द तो है..

इसलिए बस अब बोहोत हुआ..
दिल ही तो टूटा है, तो क्या हुआ??
एक इंसान ही तो छुटा है.. तो क्या हुआ??

उस नादन को खुश  देखकर
आज भी वो अनकही बाते अनलिखी सी रहे जाती है..


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