मेरा मन ! ये मन ! क्यु सुनता नहीं मेरी.
कहता हूं इसको खुश हो जा.
पर सुनता ही नहीं ...............!
करता ये वही जो करना है इसको
बीच भँवर मे फसा देता जिन्दगी मेरी
लड़ता हूं इससे, झगड़ता हूं इससे....
पर यारो ये मन फिर भी सुनता ही नहीं ....
छोड़ूं इसको इसके हाल पे तो......
ये दिल से शिकायत करता मेरी.....
दिल के गुस्से के डर से, फिर हो जाता हूँ मैं चुप.,
और ये मन फिर से करता अपनी..
मेरा मन ! ये मन ! क्यु सुनता नहीं मेरी.
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