बदलते रिश्ते

अजीब सी हो  गई  ये जिन्दगी,
ना ही इधर की ना ही उधर की. 
एक वो भी था जिसे चाहा था हमने, 
और जिसे सभी वक्त मे आगे रखा हमने. 
पर क्या पता था जिसे देंगे वो वक्त अपना, 
जो हमारी नींद का था.......
आज वही हमको बोले प्यार नहीं मेरे दोस्त,. 
बस दोस्ती का रिश्ता था. 
अजीब सी कहानी फिर से आए लौट कर, 
पहले जिसके साथ जगा करते थे 
अब उनकी याद मे जगा करते है,
लेकिन सुकून है कि जगा अब भी करते है.
बस फर्क अब जज्बातों का है. 
पहले हंस हंसा कर आंसू निकलते थे,.
अब रो रो कर हँसना पड़ता है.
गुनाह तो नहीं कोई किसी से रिश्ता तोड़ना, 
मानता तो मैं भी यही हूं... 
और बात ये सही भी नहीं किसी के लिए खुद को तोड़ना, 
मानता मैं भी यही हूं.. 
हाँ पर अब मुझे दर्द इसलिए हो रहा है, 
क्युकी अब मे एकला हूं. 
जैसे कल वो थी अकेली, 
आज उस रास्ते से मे निकला हूं.
वक्त इतना दे दिया था उसे, 
की तंग आ कर उसने घड़ी देखना छोड दी. 
हाँ सही किया उसने की ज़माने के हिसाब से बदला खुद को, 
पर गिला उससे इतनी ही बस ये बदलने का हुनर सीखया क्यु नहीं मुझको.
था तो मे भी उसका अपना आज नहीं तो कल तक ही, 
उसने बोला दोस्त के नाते ही पर रिश्ता तो ये भी प्रेम का ही. 
क्या समझ बैठे वो की प्यार सिर्फ़ उनकी ही मर्जी से होता,. 
अरे वो चले भी जाए छोड़कर  प्यार तो एक तरफा भी होता.
किसने कहा कि प्यार बस साथ रहने पर ही सफल रहता.
किसने कहा कि प्यार बस शादी के बंधन हो सके तो ही रहता. 
कोंन  सीखा गया तुमको यार की अगर ये दोनों ना हो तो रिस्ता तोड़ लो.
दिल निभाने का था तो बोल दिए होते, 
अरे मजबूर प्यार से हुए तो कह दिए होते, 
यूँ बहाने बना बना कर रिश्ते को बदनाम ना करो.
जुड़ा हर एक लम्हा जो था उसे यूँ नीलाम ना करो. 
हो सके तो रिश्ते को बदलने से पहले हालातों से लड़ना सीख लेना. 
अगर आगे से रिश्ते को समझना और इज्जत देना आए तभी तीसरे को इसका हक्क देना. 
यूँ हवा की तरह उसे खुद से जोड़ ना लेना, 
तबाह हो जाएगा अगला ये सबक मुझ उजड़े को याद करके सीख लेना. 

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