लोग तो छोड़ों क्या खुदा भी उन्हीं का था??


जिंदगी मे आने की ख्वाहिश भी उसकी थी , 

छोड़ जाने का फैसला भी उन्हीं का था. 

दिल की हर बात बताने की आदत भी उन्हीं की थी, 

और आज हर बात छुपाने का हुनर भी उन्हीं का था. 

सबसे खाश बनाकर पास रखकर , 

वो सपना दिखा कर हंसाने वाली भी वो थी. 

और हर एक सपने का बड़ी सिद्दत से 

तोड़कर रुलाने वाली भी वो थी . 

मंज़िल भी उसकी थी, रास्ता भी उन्हीं का था.

लोग भी उसके थे, काफिला भी उसका था.

साथ साथ चलने की सोच भी उसकी थी,

फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उनका था.

आज क्यु रह गया हूं मैं अकेला 

दिल से ये सवाल करता हूं?

लोग तो उसके थे ही ये तो पता हमे 

क्या खुदा भी उसी का था......... 


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