अब ये रात भी नहीं सो पाती हैं

अब ये रात भी नहीं सो पाती है, 
मेरे हालत को देख मुझ पे तरस खाती है. 
करती है हर एक कोशिस सुबह तक मेरा साथ देने की. 
इसी जद्दोजहद मे अब ये रात भी नहीं सो पातीं है. 
तेरे हालत को देख मे ना देख पाऊँगी, 
कभी कुछ ऐसा कह जाती है.

अब ये रात भी नहीं सो पाती है, 
मेरे हालत को देख मुझ पे तरस खाती है. 
देखती है मुझ अकेले को खुद मे रूठा हुआ,
तो कभी जुगनू को भेज मुझे मनाती है, 
कभी सन्नाटा सा कर के मुझे डराती है. 
कभी चांद को बादलों से ढक के,
तो कभी चांद को रोशन कर... 
मेरा ध्यान उस मिले दर्द से भटकाती है.

अब ये रात भी नहीं सो पाती है, 
मेरे हालत को देख मुझ पे तरस खाती है. 
कभी तारो को गिरा कर मुझे दिलासा देती, 
तूने जो माँगा अब मिल जाएगा सोता क्यु नहीं. 
कभी बादलों से बिज़ली गिरा कर मुझे डांट जाती है. 

अब ये रात भी नहीं सो पाती है, 
मेरे हालत को देख मुझ पे तरस खाती है. 
जब होते होते उदास मन रोने को हो जाता, 
जब आंसू आँखों से गिरने लगते, 
तो ये रात बारिश की बूँदों को अंचल बना कर,. 
मेरे अश्कों को छुपाती है. 
होते होते जब सुबह होने को हो जाती जब, 
तो ये ये रात सुकून से भर जाती है, 
कहती है चल अब उजाले मे तो तू खुद को छुपा लेगा,. 
मैं जाती हूँ अब रात को तुझे फिर सहारा देने आती हूं. 
अब ये रात भी नहीं सो पाती है, 
मेरे हालत को देख मुझ पे तरस खाती है. 


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