मैं मेरी कलम और डायरी


रात ढलते ही आज फिर से कलम उठा ली, 
कुछ लिखने के लिए सिरहाने मे रखी डायरी उठा ली,
किस पर लिखू आज ये सोच ही रहा था ? 
ख्याल तो मन मे बहुत थे पर क्या लिखू बुझ नहीं रहा था।

फिर अचानक अपनी डायरी-कलम को देखते ही,
ख्याल एक आया साथी तुम अकेले के मेरे कलम डायरी,
तो क्यों ना आज आज तुम दोनों पर ही लिखता हूं,
कितने नखरे करते हो तुम दोनों ये सब आज बया करता हूं।

फिर क्या था मैंने कलम से पन्नों को जैसे छुआ, 
आज लिखते नहीं बात करते हम तीनों ये ख्याल उठ गया. 
अरसा हो गया किसी से दिल की कुछ बातें करे. 
जैसे ही मैंने अपनी कलम डायरी से ये अल्फाज कहे,

सयानी डायरी भी मेरी कलम की ओर इशारा बोले ,
सुन रही कलम कह रहे जनाब बातें करे अरसा हो गया, 
रोज रात को हमको साइड रख ना जाने ये ,
किस की तस्वीर से बात करते है ।
कोई नहीं होता इनके आश पास,
फिर भी ना जाने किससे,हसी-मज़ाक,
गुस्सा रोना बोल-चाल करते हैं।
जनाब फिर भी बोलते हैं,. बात ना करे अरसा हो गया ।

सोते नहीं रात भर अपना हमको भी उठा रखते है, 
देख कलम जनाब कह रहे चलो आज बातें करते हैं, 
कलम भी कहा कम थी आज मौका जो मिला था , 
बोली ये सोचते कि हमको भी लोगों की तरह बना लेंगे ।
जैसे दिन भर दर्द छिपाकर रहते जनाब ,
ये पेतरा हम पर भी चला लेंगे ।
पता नहीं इनको की इनके साथ रात भर हम भी जगते है ,
और जनाब कह्ते चलो आज हम तीनों बातें करते हैं. 

फिर बोली कलम डायरी से देख लेना डायरी, 
अभी इन्होंने कहीं और खो जाना है. 
खुद को भला बुरा बोल कर सुबह कर जाना है. 
और सुबह हम दोनों को छोड़कर कर जनाब ,
वो दिखावटी दुनिया मे चले जाएंगे ।
किसी को हम बता ना दे इनकी दिल की बात,
इसलिए हमको सैफजोन मे छिपा जाएंगे. 
रात भर खुद से बात कर सुबह कर जाते, 
और जनाब कह्ते चलो आज बातें करते हैं. 
 
और जनाब कह्ते चलो आज हम तीनों बातें करते हैं. 




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