मेरी धड़कन मे बसी तुम वो साज बनके,
जिसे गुनगुनाना मेरा अब धड़कन सा हो गया.
कभी याद बनके तो कभी सवाल बनके.
तुम्हें सुलझाना भी एक सवाल हो गया.
जितना भी सुलझा रहा इसे यूँ इसे .
उसे उतना ही उलझा हुआ मे पा रहा.
मेरी धड़कन मे बसी तुम वो साज बनके,
जिसे गुनगुना मेरा अब धड़कन सा हो गया.
साकी का इंतजार कर रहे हर रात होने तक ,
इन रातो का साथी अब पैमाना हो गया.
जब होता नसा कुछ पल भर का ही सही .
मेरे यारो घर भी जाना फिर ये फसाना हो गया.
मेरी धड़कन मे बसी तुम वो साज बनके,
जिसे गुनगुना मेरा अब धड़कन सा हो गया.
इंतजार की सब हदे सब्र के साथ निभा रहे.
सब्र साथ लेके चलना ही गुनाह हो गया.
मेरी धड़कन मे बसी तुम वो साज बनके,
जिसे गुनगुना मेरा अब धड़कन सा हो गया.
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