बिखरा सा हूँ अब बहुत,सायद अब समेटा ना जाऊँ.


बिखरा सा हूँ अब बहुत,
सायद अब समेटा ना जाऊँ.
टूट गया हूं बहुत अब,
शायद अब जोड़ा ना जाऊँ.

गलने लगा हूं अब अंदर से,
सायद ही फिर पनप पाऊँ.
यारो तुम फिक्र ना करना अब, 
सायद ही अब शिकायत करने आऊँ.
उजालों में अंधेरा सा लगता है अब,. 

शायद ही अंधेरों से निकल पाऊँ. 
मुस्किल है अब समझाना किसी को,. 
शायद ही अब किसी को कुछ समझा पाऊँ. 

झूठ फरेब नहीं है दिल में, 
पर शायद ही अब आंसू दिखला पाऊँ. 
मन तो बहुत करता किसी से कह कर रोने का, 
पर शायद ही अब कोई ऐसा अपना बना पाऊँ. 

अब शायद ही वो मेरी जिन्दगी फिर से नहीं लौटेगी,. 
मुस्किल है अब मैं वो मुस्कान दिखा पाऊँ. 
गलत सही का अब हिसाब नहीं रखता, 
क्युकी शायद अब मुस्किल है वो हिसाब ले पाऊँ 

बिखरा सा हूँ अब बहुत,
सायद अब समेटा ना जाऊँ.


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