क़िस्मत का मारा ऐसा ! हंसना छोड़ो कब खुल कर रो पाऊंगा।।


क्या सोचते हैं लोग मुझे की मे संभल जाऊंगा,
हर बार टूटूंगा और फिर उठ उठ जाऊंगा।।
इंसानी रूह का बना है ये मन मेरा भी,
खुदा नहीं  की हर बार संभल जाऊंगा ।।
पता नही हर बार मेरे अपने मुझ सीखा जाते,
टूटना नही रूठना नही ये कह कर चले जाते।।
एक पल मुझे वो शिकायत का भी मौका ना देते,
ना जाने मेरे अपने मुझे क्या समझ चले जाते।।

अब अकेले में हर पुराने पल ये सोचता हूं,
हर बीते लम्हे जिंदगी के एक दूसरे से जोड़ता हूं।।
इन जोड़ो मे एक हिसाब बराबर ना जाने क्यूं आता,
हर बार ना जाने क्यूं मे ही अकेला खुद को पाता।।
यार मेरे यारो तुम फिकर ना करो,
ये यार तुम्हारा जुबा का है पक्का।।
दिल भले ही इसका साफ तुम्हे ना दिखे,
पर दिल का दर्द छिपाने मे हिसाब इसका पक्का।।

अब हंसी मेरी और बड़ जायेगी,
कल से फिर दुनियां हंसी और कायल हो जायेगी।।
हैरान होते वो पागल ये इतना हंसता क्यों है।
उन्हे क्या पता इस हंसी में कितना दर्द छिपा है।।
पहचान लेते थे जो मेरी हंसने के पीछे का दर्द,
उन यारो को ना जानें किस मोड़ पर छोड़ा है।।
यार कब मैं ना जाने खुल कर जी पाऊंगा,
क़िस्मत का मारा ऐसा हंसना छोड़ो, 
मैं कब ना जाने खुल कर रो पाऊंगा ।।


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