किसी के सालो के रिश्तों मे खटास मुझ कारण आई।।
जिस दोस्त के साथ मिलने लगा था चैन सुख थोडा,
उसी दोस्त के लिए मेरा आना सुनामी ले आई।
चाह कर भी ये खुदा तुझसे फरियाद क्या करू,
मेरी किस्मत मे तो खामोशी तूने ही तो लिखवाई ।।
फ़िर से मेरा आना किसी के लिऐ तबाही लायी।।
उन्हें डाला मुसीबत में रिश्तों को उनके बेबाक किया,
मेरा हर एक पल उन्हें पल पल बर्बाद यूं किया।।
कैसे करू मैं गुनाहों का पाश्चताप अपने,
मैंने तो हर एक गुनाह अपनी खुदगर्जी के लिऐ किया ।।
सजा मेरी यही की अब उनसे फिर बात ना करू,
इसी याद और इसी बात मे मैं तिल तिल अब मरू।।
आए ना अब चैन रातों मे मुझे किसी हाल मे भी,
मेरी ये सजा भी काफ़ी नहीं मेरे इस गुनाह की ।।
मेरा आना किसी के लिऐ तबाही लायी।।
जल्द से जल्द सुलह उनके बीच हो जाएं,
दोनों के रिश्ते फिर गुलाब से खिल जाए ।।
जगह बचे ना मुझ कांटे की उन दोनो के बीच में,
ज़रा मुझ कांटे को माली आकर चुन जाएं।।
महक उठे वो दोनो फिर से अंजुमन बाग में,
मेरे पर रहम ये कर खुदा ये जल्द से जल्द हों जाए।।
मेरा आना किसी के लिऐ तबाही लायी।।
मेरे हिस्से की गलतियों की सजा मेरे उस यार को ना देना,
मुझे अब तक दिया जितना गम चाहे उसका 10 गुना देना।।
मैं तो लड़ लूंगा गमों से मुझे अब आदत हो गई,
मेरे उस दोस्त को मेरे हर जन्मों की खुशियां देना।।
अर्ज आज तो मान मेरी कभी मेरी ना माना,
बस इस बार मेरी इस अरदास को सुन जाना।।
भले ही बदले में मुझे तू गमों का सैलाब देदे ,,
मेरे उस दोस्त को उसकी सब खुशियां दे दे।।
मेरा आना किसी के लिऐ तबाही लायी।।
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