बीता हुआ होगा या उससे भी ज्यादा बुरा होगा ।।
अब तो अब मे ही रहने को दिल करता हैं,
ना जाने आने वाला कैसा कैसा होगा।।
होगा कोई अपना या अपनेपन जैसा होगा,
या अपना कहने वाला बीते लोगों जैसा होगा।।
होगी बात अपनेपन की या हर हाथ मे खंजर होगा ।।
अब कौन जाने क्या होगा, क्या जाने कैसा अब मंजर होगा।।
रुक गया हूं जहां , वहां से रास्ता हूं भूला।।
हर सफर मे एक मुसाफिर से हूं छूटा।।
राह में चलते जिन अनजान को अपना कहा,
वो हर शक्श अपनी मंजिल तक साथ चला।।
हर घड़ी अगर दी गईं मंजिल जब मेरे अपनो को,
तो मेरे अपनो ने मुझे छोड़ दुनियां भर का शहर चुना।।
कह तो हर किसी को दूं , सुना भी दूं उनकी गलतियां,
पर जुबां सिल जांये देख उनकी खुशियां।।
हर एक मोड़ पर समझौता कर ही लिया हमने,
ना चाहते हुऐ भी बाजारू कर दिया खुद को हमने।।
अब ना जाने खुद से नजरे छुपा छुपा कर अक्श देखता हुं,
खुद के जज़्बात को इस कदर बेअबरू किया हमने।।
बड़ा मुस्किल है अब इन बाजारों से निकलना मेरा,
क्युकी यंहा खुद को बडा आम सा किया हमने।।
अब हर शक्श नोच खुरोच कर चला जाता है ।।
ख़ुद को समझौते की जंजीरों मे जो बाध लिया हमने।।
कौन सुनेगा यहां दर्द मेरा, कौन देखना मेरे भी एहसासो को
बुरा लगता मुझे भी किसने सोचना इन बातो को।।
बस वक्त मुताबिक मुझे साथ लिऐ चलते है सभी,
ना जाने सबने मुझे इतना गया गुजरा समझ लिया क्यों??
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