आसान नहीं होता खुद से बांते करना, यूं हर एक बात ख़ुद से ही करना।।


आसान नहीं होता खुद से बांते करना,
यूं हर एक बात मन में ख़ुद से ही करना।।
अकेलेपन से गुजरने के बाद ये मुकाम हासिल होता।
हर राह पे टूटने और छुटने के बाद ये होता।।
हर एक उम्मीद जब बिखेरे तब ।।
जब हर रात खुली आंखो से गुजरे।।
जब बाते बहुत हो कहने सुनने के लिए,
और साथ ना हो कोइ संग।।
तब बांते खुद से ही खुद मे होने लगे।।
उस पल बस दिल मेरा ये ही बोले।।
खुद से बांते करना इतना आसान नहीं होता।।
बहुत कुछ बिखरने के बाद ये हुनर मिलता।।

बहुत सा कुछ छुट जाता तब ये सलीखा आता,
जब कोई ना हो साथी कोई दोस्त तब यह वक्त आता।।
हिम्मत से ही हर कोई यूं कर पाता,
खुद से ही गीला खुद से सीकवा और खुद को गुनहगार,
ये सब तन्हा होने के बाद ही हो पाता ।।
जब सब उम्मीद किसी से मिलने की छूटे,
तब इंसान खुद से ही बात करना सीखे।।
आसान नहीं होता खुद से बांते करना,
यूं हर एक बात ख़ुद से ही करना।।

चाह भी खुद की नही रहती जब,
सुध खोई हुई रहती तब।।
जब अपनो से दूर हम होने लगे,
बिना मतलब के चुप और खोए रहने लगे।।
तब रिश्ता एक अटूट खुद की खामोशी से बध जाता,
तब कही कोई खुद से बांते कर खुद को समझाता ।।
आसान नहीं होता खुद से बांते करना,
यूं हर एक बात ख़ुद से ही करना।।

जब हर राह हर मोड़ विरान सी लगने लगें,
जब सफर बिन हमसफर के कटने लगे।।
जब छांव में भी धूप लगने लगें,
बिन बारिश आंखें भीगने लगे।।
जब मंजिल का कोई पता ना हो,
तब जो बात हो खुद से ही होने लगें।।
उस घड़ी उस पल ये समझ आता।।
हां मै अब हुं अकेला बिखरा हुआ ये गुनगुनाता।।
आसान नहीं होता खुद से बांते करना,
यूं हर एक बात ख़ुद से ही करना।।


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