कभी लिखता दिल के अरमां किताबों में, कभी फिर उन किताबो को पड़ता ।।

नींदों में सपने सपनो में अपने  ,         
जरा तुम, संभल कर सपनों में आना।।
देखे ना तुमको जो सोचे ना तुमको,
फिर भी बिन बातो के याद आना तुम्हारा।।
कैसे कहें ! कैसे रहे ? यादों को मुश्किल भुलाना बडा ।।

ख़ामोश हम बिना कुछ कहें ज़रा सा हम अलग से हो गए,
बाते बहुत थी कहनी और सुननी पर हालातो से चुप गए।।
ख्यालों मे जी भर के  करता बाते रहता जब अकेला।।
कभी लिखता दिल के अरमां किताबों में,
कभी फिर उन किताबो को पड़ता ।।

ऐसे ही रात गुजरती मेरी अब,
सालो से अब यह मैं हर रोज करता ।।
कभी रुकता बीते हुऐ कल मे ,कभीआने वाले से डरता ।।
फिर आंखों के हिज्र को साफ कर,
सपने मे बीते लम्हों में जाने की कोशिश करता ।।
भले ना आए मुझे सपने पर फिर भी,
उन हसीन सपनो का इंतजार करता ।।
कभी तो टूटेगी मेरी भी गर्दिश,
बस उसी टूटते तारे का इंतज़ार मैं करता।।








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