नाराज़ खुद से हूँ, तुमसे कोई गिला कोई बात नहीं,
वक़्त बदलता गया पर कमबख़्त ये मेरे हालात नहीं।
हमने खोल दिए दिल के राज़ सारे-के-सारे,
उन्हे शौक़ माद्दी रहा, समझना था मेरे जज़्बात नहीं।
कर मेरे तू अपने रूह को कुछ यूँ रु-ब-रु,
बहुत कर ली हमने, अब सिर्फ़ जिस्मानी मुलाक़ात नहीं।
मय समझ कर पीता रहा हूँ अश्कों को ऐ साक़ी,
तू पूछेगा मेरा हाल -ओ-हालात पर आज कर कोई सवालात नहीं।
हुआ क़त्ल-ए-आम मेरे अरमानों का सरे बाज़ार-ए-दिल-लगी
सांसें चलती तो हैं मगर मुझ में बची अब हयात नहीं ।।
4 Comments
Very good 👍🏻
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DeleteBeautiful 😇
ReplyDelete🫡🙏✍️✍️
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