नाराज़ खुद से हूँ, तुमसे कोई गिला कोई बात नहीं, वक़्त बदलता गया पर कमबख़्त ये मेरे हालात नहीं।




नाराज़ खुद से हूँ, तुमसे कोई गिला कोई बात नहीं,
 वक़्त बदलता गया पर कमबख़्त ये मेरे हालात नहीं।

हमने खोल दिए दिल के राज़ सारे-के-सारे, 
उन्हे शौक़ माद्दी रहा, समझना था मेरे जज़्बात नहीं।

कर मेरे तू अपने रूह को कुछ यूँ रु-ब-रु, 
बहुत कर ली हमने, अब सिर्फ़ जिस्मानी मुलाक़ात नहीं।

मय समझ कर पीता रहा हूँ अश्कों को ऐ साक़ी, 
तू पूछेगा मेरा हाल -ओ-हालात पर आज कर कोई सवालात नहीं।

हुआ क़त्ल-ए-आम मेरे अरमानों का सरे बाज़ार-ए-दिल-लगी
सांसें चलती तो हैं मगर मुझ में बची अब हयात नहीं ।।

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