याद है वो हमें कुछ इस तरह से अब तलक,
उससे दूर होकर खुद को भूला बैठे हैं हम ।।
निगाहों में नहीं वो अब दिल में कहीं बसता है,
किस अजनबी को ये अपना बना बैठे हैं हम
जिसे ये सोचकर चाहा कि खुशी मिलेगी हमें ,
उसके गम को अब सीने से लगा बैठे हैं हम ।।
गुनगुना न सके हम जिसे चाहते हुए भी कभी,
उसे अपने सीने की धड़कन बना बैठे हैं हम
छुपाया सदा जिसे दुनिया कि नजरों से हमने ,
उस गजल को इस शायरी में दिखा बैठे हैं हम।।
जिसे बनाया थ दर्द ये दिल का साथी हमराज,
अब उनके भी दर्द से खुद को तड़पा रहे हम।।
मानते थे जो होंगे हर पल हर मुस्किल मे साथ,
न जाने क्यों ये गलतफहमी बना बैठे हम।।
अब उनको ढूंढते ढूंढते, खुद को ही खो बैठे है हम।।
0 Comments