हर रात मे कुछ पल चंदा चांदनी और तारो को देखू।


चंदा को देखू कभी तारो को देखू ,
मैं हर रात  कुछ पल इन यारो को देखू।।
होते है जब चंदा और चांदनी अलग ,
चन्दा चांदनी के मिलने—बिछुडने का,
खुशी और दर्द का वो पल भी हां देखू।।
मैं उस पल तारो का याराना भी देखू ,
जो संग चंदा के उस पल मे आते,
चंदा और चांदनी दोनो को समझाते ।।
उस पल में उनका याराना देखू।।
चांदनी का तारो मे विश्वास देखू,
मै उस पल यारो का प्यार मे देखू।।
हर रात मे कुछ पल चंदा चांदनी और तारो को देखू।

देखू मैं  चंदा और चांदनी का सब्र,
बिन इक दूजे के दोनो का दर्द।।
देखू तन्हाई दोनों की उस पल,
जब चंदा और चांदनी ना हो संग।।
देखू मे चंदा , चांदनी और तारो का याराना ,
उदास चंदा चांदनी को तारो का समझाना।।
तारो को चंदा चांदनी का साथ देते मैं देखू ,
घनी रात मे भी तारो को चंदा संग देखू ।।
उसे राह दिखाने का राही तब तारा,
चंदा और चांदनी को मिलाते उसे मे देखू।।
मै देखू तारो का बिन आश समर्पण,
उस पल मैं चंदा और तारो मे सच्चे यारो को देखू।।
हर रात मे कुछ पल चंदा चांदनी और तारो को देखू।


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