तिनका तिनका से बना आशियाना उजाड़ डाला।
जितनी खुशी उस आशियाने के बनने की थी,
दर्द उसे भी ज्यादा उजड़ जाने में पाया।।
खामोश फिर से बैठ गया उस बंजर जमीन में।
जमीन पर रिश्तों की राख को भी छान मारा।।
मिला ना कोई निशान मेरे उजड़ जाने का .
निशानों को भी शायद दफन कर डाला है।
कह भी नही सकते की छोड़ गए लोग,
खुद को समझाया लोग गुम गए ।।
गुम हुऐ सब इस तरह की हम सुन्न हो गए,
अपने कह कर दोस्त भी पल भर में खो गए।।
समझा गए हमे भुल कर फीर से आगे बड़ो,
हम अब हर बार बिखर बिखर कर टूट गए।।
ना जाने कितना पत्थर दिल समझते हमको,
इसलिए हर बार टूटने को छोड़ जाते लोग।।
अब आंखे भी इन्तज़ार के लम्हों मे रहती,
भोर हो या रात बस भीगी सी रह जाती।।
यादों का करवा मेरा किसी समंदर से कम अब कहा,
डूबा हुआ उसमे अब फीर भी भीगा हुआ ना।।
ना जाने मेरे सब्र का लोग क्यों इम्तिहान लेते,
सब अपने ही जाने वाले इसलिए हम भी हंस के,
चलो खुश रहो तुम ये कह के दर्द छुपा लेते।।
अब तो बदल लूं खुद को ये कहा हो सकता,
बस हर दिन खुद को ही दोस्त बना ,
अब उससे अपनी ही बात कहता।।
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