फिक्र नहीं कोई तुम्हारी ,ना वास्ता तुमसे मेरा।।
समझाया दिल को हर दिन यह कोशिश करके।।
पर ना जाने ये कुछ सुनने को राजी क्यू नही होता,
दिल से उतार कर फेंका गया हुं मैं ये क्यों नहीं है मानता।।
समझा समझा कर इसे मै, ना जाने कितना टूट गया हूं।।
मैं गैरो से नहीं टूटा अपनो से ही लूटा गया हुं।।
काश की कोई दर्द से मेरे भी वास्ता रखता,
दो झूठे ही सही पर हिम्मत रख ये दिलाशा देता।।
मजबूत था कभी अब धीरे धीर मजबूर हो रहा हूं ।।
दिल के करीबी थे सभी उनको ही खो रहा हूं।।
लौट लौट कर आवाजे ना जानें सीधे दिल मे टकराती,
गैरो से भी गिरा था मैं ना जानें मुझे ही क्यों सुनाती।।
वक्त मेरा रूठा या मैं वक्त से ,
लोग मेरे से छूटे या मैं लोगों से।।
हर एक रिश्ता धीरे धीरे गुम हो गया,
एक धुंध की देरी दी आने की बस ,
हर कोई आंखों से ओझल गया।।
बस मेरा ये सवाल मेरे दिल मे ही दबा रह गया।।
0 Comments