तेरे बिन इक कमी सी रह गई है।
मिटाई याद तेरी ख़त जला कर ,
मगर फिर भी दिल से जुड़ी सी रह गई ।
उदासी रुख से पोंछी जैसे तैसे,
निगाहों में फिर भी नमी सी रह गई ।
नहीं कोई ख़ुशी है जिंदगी में अब,
गमों से जूझती सी जिंदगी रह गई।
नहीं मिलते जवाबों के निशाँ जब तक मुझे ,
सवालों से घिरी सी ये जिंदगी रह गई ।
रिश्तों को नाम देते अपनों का बना देते खास ,
पर अपनों को चुनने में ये डोर एक दम से टूट गई।।
नज़र भर देख लिया छुपकर उनको ,
पर लबों की बात बस लबों मे दबी सी रह गई है।
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